Israel-Palestine War Reason: भारत पहले फिलिस्तान के साथ था। भारत का बिलकुल क्लियर स्टैंड था की जमीन छीनने वाले इजराइल के साथ भारत किसी भी हाल में खड़ा नहीं होगा। अटल का दौर बदला और भारत भी बदल गया। अब भारत इजराइल के साथ है। लेकिन इजराइल बना कैसे? कैसे फिलिस्तीन के जमीन पर शरणार्थी बन कर के आया और फिलिस्तीन को ही निगल गया?
आज के हमारे इस वीडियो का फोकस इस बात पर रहेगा। की इजराइल ने फिलिस्तीन की जमीन कैसे छीन ली। और कैसे अमेरिका से गलबहियां कर के देश की मान्यता ले ली। और कैसे इजराइल को अमेरिका सप्पोर्ट करता है, प्रोमोट करता है। तो दोस्तों बिलकुल शुरू से शुरू करते हैं। जिससे पूरी बात आपको एकदम आराम से समझ में आ जाए।
हाइलाइट्स
तीन धर्मों के लोग इसे मानते हैं पवित्र जगह
दोस्तों भू मध्य सागर और जॉर्डन नदी के बीच पड़ने वाले फिलिस्तीन को यहूदी मुसलमान और ईसाई तीनों धर्म के लोग अपनी पवित्र जगह मानते हैं। इस इलाके पर ऑटोमन सम्राट का कब्ज़ा था। ऑटोमन साम्राज्य ने 4 सदी से भी ज्यादा लम्बे समय तक फिलिस्तीन पर राज्य किया। 19वीं सदी के आखिर में यूरोप से फिलिस्तीन में यहूदियों का पलायन शुरू हुआ। इसे “पहला आलिया” कहा गया।

आलिया यहूदियों के दूसरे देशों से पलायन को कहा जाता है। यह पलायन साल 1881 में यूरोप में हुए नरसंहार से बचने के लिए हुआ था। इसके बाद 1904 से 1914 के बीच दूसरा आलिया यानी पलायन शुरू हो गया। और ये पलायन भी नरसंहार से बचने के लिए हुआ था।
हजारों की संख्यां में यहूदी फिलिस्तीन में आकर बसे
हजारों की संख्यां में यहूदी फिलिस्तीन में आकर के बसने लगे। इस बीच यानी 1904 से 1914 के बीच ही चाइम वाइज में नाम के एक केमिस्ट और ब्रिटेन में यहूदियों का एक बड़ा लीडर पहली बार फिलिस्तीन जाता है। ये वहां की जाफा इलाके में एक कंपनी बनाता है। जिससे फिलिस्तीन में इजराइल की नींव पड़ती है।

इसके तीन साल के भीतर एक यहूदी नेशनल फण्ड बनाया जाता है। जिससे फिलिस्तीन में यहूदियों की कॉलोनी बसाने के लिए जमीन खरीदी जाती है। इसके बाद मिरजबान आमेर में 60 हजार फिलिस्तीनियों को अपना घर छोड़ने पर मज़बूर किया जाता है।
विरोध के बावजूद सालों तक फिलिस्तीन में यहूदियों का एंट्री का सिलसिला जारी रहता है। 20वीं सदी की शुरुआत में जब यहूदियों का पलायन तेज हुआ तो 1909 में पहले यहूदी शहर तेल अवीव की स्थापना हुई। इन सब के बीच ही पहला विश्व युद्ध भी शुरू हो गया।
फिलिस्तीन में राष्ट्रिय घर देने मंजूरी
विश्व युद्ध चल ही रहा था के उस दौरान 1917 में ब्रिटेन में विदेश सचिव ऑर्थर बोल्फोर्ड ने ब्रिटेन के एक यहूदी नेता लार्ड रात्चाइल्ड को एक चिट्ठी लिखी इसे बोल्फोर्ड डिक्लरेशन के नाम से जाना जाता है। अब इस चिट्ठी में लार्ड बोल्फोर्ड ने हूदियों को फिलिस्तीन में राष्ट्रिय घर देने की बात मान ली थी।
इसके साथ ही फिलिस्तीन इलाके में यहूदी राज्य की बड़े स्तर पर नीव पड़ गई थी। पहले विश्व युद्ध के बाद ऑटोमन साम्राज्य का पतन हो गया। फिर ब्रिटेन और फ्रांस ने मिलकर खाड़ी देशों का बंटवारा कर लिया।

सीरिया पर फ्रांस ने कब्ज़ा कर लिया और इराक़ और फिलिस्तीन पर ब्रिटेन का कब्ज़ा हो गया। यह सब कुछ लीग ऑफ़ नेशन के देख रेख में हुआ। मतलब जब यूएन नहीं था तब लीग ऑफ़ नेशन काम करता था। और यहीं पर अंतररष्ट्रीय पंचायतें हुआ करती थी।
दोस्तों आप यह कहानी बिलकुल ध्यान से सुनते जाइये क्यूंकि इस वीडियो को देखने के बाद आपके दिमाग में जो भी कन्फूशन होंगे के अच्छा कौन है इजराइल या फिलिस्तीन? या इजराइल कैसे बना वो सारे डाउट्स बिलकुल क्लियर हो जाएंगे।
फिलिस्तीन अंग्रेजों का गुलाम था
तो दोस्तों आपको बता दें फिलिस्तीन अंग्रेजों का गुलाम था। फिलिस्तीन पर पहले विश्व युद्ध के बाद अगले 10 सालों में लगभग 1 लाख यहूदी फिलिस्तीन में बसने के लिए चले आए। अब नतीजा यह हुआ के 1936 से 1939 के बीच अरब में विद्रोह हो गया। और यह विद्रोह मुस्लिमों ने किया।

क्यूंकि वो अपने देश में घुसे चले आ रहे यहूदियों की खिलाफत कर रहे थे यूरोप से जान बचा कर भागे यहूदी इस संघर्ष में लड़े। यहूदियों को लगा हर की जगह पर हम पीते जा रहे हैं। कब तक पीटते रहेंगे। इस संघर्ष में हजारों लाखों लोग मारे गए। आखिरकार 1939 में ब्रिटेन ने फिलिस्तीन में यहूदियों के आने पर रोक लगा दी।
Israel-Palestine War Reason: शुरू हुआ विश्वयुद्ध
इसी बीच दूसरा विश्व युद्ध भी शुरू हो गया। दुसरे विश्व युद्ध में यहूदियों के खिलाफ जम कर अत्याचार हुए। चुन चुन कर यहूदियों को मारा जाने लगा। यह अत्याचार हिटलर की नाज़ी सेना कर रही थी। हिटलर की नाज़ी सेना से बचने के लिए यहूदियों ने फिर भागना तो शुरू किया लेकिन दुनियां के बाकी मुल्क उन्हें अपने यहाँ शरण देने से बच रहे थे।

फिर जगह कहाँ मिली जानते है। दोस्तों फिर यहूदियों को जगह मिली फिलिस्तीन में। जब ये सब हो रहा था तब घुप चुप तरीके से एक आलिया बेट नाम से एक आंदोलन चल रहा था। इसके जरिये यहूदियों को घुप चुप तरीके से फिलिस्तीन में बसाया जाने लगा। एक अनुमान के मुताबिक़ दूसरे विश्व युद्ध के आखिर तक फिलिस्तीन में यहूदियों की आबादी 30 फीसदी से ज्यादा हो गई थी।
यहूदी राष्ट्र की मांग होने लगी
अलग यहूदी राष्ट्र की मांग होने लगी। यहूदीयों के लिए अलग देश की मांग तो वैसे लम्बे समय से हो रही थी। लेकिन दुसरे विश्व युद्ध और नाजियों के हाथों यहूदियों के नरसंहार के बाद ये मांग और भी ज्यादा तेज हो गई। ब्रिटेन ने यहूदियों और अरब के प्रतिनिधियों के साथ बात चीत कर के मसले को सुलझाने की पूरी कोशिश की लेकिन बात नहीं बानी।
यहूदी फिलिस्तीन को यहूदी और अरब देश में बाटने की मांग पर अड़े थे। जबकि अरब इसके खिलाफ में था। 15 मई 1947 को ब्रिटेन ने इस मामले को संयुक्त राष्ट्र की महासभा के पास भेज दिया। सितम्बर 1947 में संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव रखा गया। प्रस्ताव में एक अरब मुल्क और एक यहूदी देश की बात थी। 48% हिस्सा फिलिस्तीन को दया गया और 44% हिस्सा इजराइल को दिया गया। जबकि येरुसलम के 8% हिस्से की जमीन अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण के हिस्से में थी।
1947 में शुरू हुआ गृह युद्ध
दिसंबर 1947 में गृह युद्ध शुरू हो गया। इस बीच ब्रिटेन ने एलान किया की 15 मई 1948 को वो यहाँ से चले जाएंगे। इस एलान के बाद यहूदी विद्रोह संगठनों की कार्यवाही में ढाई लाख अरबों ने फिलिस्तीन छोड़ दिया। ब्रिटिश शाशकों के लौटने के एक दिन पहले 14 मई 1948 को यहूदी नेता डेविड बेन गोरियो ने एक अलग यहूदी राष्ट्र का एलान किया। उन्होंने इसे इजराइल नाम दिया। इजराइल के गठन के एक दिन बाद ही मिश्र, जॉर्डन, सीरिया और इराक़ ने हमला कर दिया।
यह पहला अरब इजराइल संघर्ष था। अरब और इसरायली सेना के बीच लगभग एक साल तक संघर्ष चलता रहा। आखिरकार 1949 में सीजफायर का एलान हुआ और इजराइल फिलिस्तीन के बीच अस्थाई बॉर्डर बनी। इसे ग्रीन लाइन के नाम से जाना जाता है। सीजफायर की घोषणा से पहले जॉर्डन ने वेस्ट बैंक पर कब्ज़ा कर लिया था जिसपर पूर्वी येरुसलम का हिस्सा भी शामिल था।
1967 की लड़ाई में इजराइल ने गाजापट्टी पर कब्ज़ा कर लिया
जबकि मिश्र ने गाज़ा पट्टी पर कब्ज़ा कर लिया था। वेस्ट बैंक येरुसलम और जॉर्डन के पूरबी इलाके में पड़ता है। फिलिस्तीन और इजराइल दोनों ही इसे अपनी राजधानी बताते हैं। गाजापट्टी की 50 किलोमीटर से भी ज्यादा लम्बी सीमा इजराइल से लगती है। 1967 की लड़ाई में इजराइल ने गाजापट्टी पर कब्ज़ा कर लिया था। लेकिन फिर साल 2005 में उसमे अपना दावा छोड़ दिया था।
इसके उलट वेस्ट बैंक पर अभी भी फिलिस्तीनियों का कब्ज़ा है। गाज़ा पट्टी फिलहाल हमास के नियंत्रण में है। इजराइल हमास को फिलिस्तीन का आतंकी संगठन मानता है। आज की तारिख में इजराइल और फिलिस्तीन के संघर्ष को धार्मिक चश्मे से दिखाया जा रहा है।
यूएन ने किया बंटवारा
इतने सालों में फिलिस्तीन के साथ इतना बड़ा अन्याय का उदाहरन नहीं हो सकता की 1949 में इजराइल को अमेरिका के सपोर्ट से एक देश की मान्यता तो मिल गया थी। लेकिन फिकलिस्तीन को नहीं मिली थी। जबकि बंटवारा यू एन ने ही किया था। इजराइल की दो राजधानी हैं।
तेल अवीव और येरुसलम येरुसलम को इजराइल की राष्ट्र राजधानी की मान्यता नहीं थी। लेकिन ट्रम्प ने भी येरुसलम को इजराइल की राजधानी की मान्यता दे दी।
अमेरिका ने हमास को आतंकी संगठन घोषित कर रखा है
दोस्तों अमेरिका ने हमास को आतंकी संगठन घोषित कर रखा है। जब अमेरिका ने ही घोषित कर रहा है तो सब उसे आतंकी संगठन मानते हैं। लेकिन हमास और फिलिस्तीन ऐसा नहीं मानती है। अरब देश ऐसा नहीं मानते हैं। हमास फिलिस्तीन में चुनाव लड़ता है और फिलिस्तीन की अघोषित आर्मी होने का दावा करती है।
मामला यहाँ पर अटक जाता है कि जहाँ पर अमेरिका इजराइल का समर्थन करता है उस तरह का सपोर्ट अरब देश फिलिस्तीन का नहीं करते हैं। अरब देश ऊपरी मन के साथ फिलिस्तीन का साथ देते। आपको क्या लगता है हमास के पास इतना हथियार कहाँ से आया जो उन्होंने 5,000 राकेट इजराइल पर दाग दिए।
इजराइल फिलिस्तीन 2008 से अब तक हुए मौत का आंकड़ा
अब तक के आंकड़े की बात करें तो इस जंग में साल 2008 से अब तक दोनों हो गुटों से लगभग 7000 लोगों की मौत हो चुकी है। इन मौतों की संख्यां की तुलना करें तो सबसे ज्यादा मौत फिलिस्तीनों की हुई है। नीचे दिए गए चित्रों से इसे समझा जा सकता है।


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